Saturday, January 1, 2011

प्रभु का खेल


व्यर्थ की आशा, व्यर्थ की उम्मीदें, व्यर्थ की इच्छाएं हम लोग करते रहते हैं, पर एक बात भूल जाते हैं कि जो कुछ आज हमारे या तुम्हारे जीवन में हो रहा है, यह एक बड़े नाटक का एक छोटा-सा हिस्सा है। आज जो अपने हैं, वे पराए हो रहे हैं। जो पराए हैं, वे अपने हो रहे हैं। कोई मिल रहा है, कोई बिछुड़ रहा है। अपने जीवन को एक खेल की तरह देखो कि प्रभु क्या खेल दिखा रहा है। थोड़ा पीछे अगर जाओ, अपने जीवन में पीछे झांको। पुराने समय में कोई ऐसा वक्त आया हो जब भारी दुख हुआ हो, उसे याद करो। जब वह समस्या थी, जब वह मुश्किल थी तो लगता था कि यह कभी हल नहीं होगी। यह वक्त तो कभी बीतेगा ही नहीं, पर धीरे-धीरे वह समस्या हल हो जाती है। वह परेशानी दूर हो जाती है।
बुद्ध ने इस बात पर बड़ा जोर देकर कहा था कि समय, जीवन और संसार एक चक्र की तरह हैं, जो घूमता रहेगा, बदलता रहेगा, चलता रहेगा और विवेकी वही है, सुखी वही इस जीवन में रह सकेगा, जो इस घूमते हुए चक्र को रोकने की कोशिश न करे। चक्र चल रहा है, चक्की चल रही है, चलता हुआ चक्र किसी की मर्जी से रुकने वाला नहीं है, पर फिर भी जबरदस्ती उसे रोकने की कोशिश करें तो हाथ क्या आएगा?
संसार और हमारा जीवन एक चक्र की तरह है और इस चक्र में आज जो चीज है, वह कल नहीं रहेगी। जो कल होगी, वह फिर नहीं रहेगी। चीजें बदलती हैं, इनका बदलना स्वभाव है। संसार का बदलना स्वभाव है। तो आप यह करें कि इस बदलाव को स्वीकार करना सीखिए। इस बदलाव को रोकने की कोशिश मत करिए और हम यही करते हैं। आज सुख है तो चाहते हैं कि यह सुख बना ही रहे।
आज शोहरत है तो चाहत बनी रहती है कि यह शोहरत बनी रहे। आज सब ओर शांति है तो लगता है कि शांति बनी ही रहे। पर यह जरूरी नहीं है कि युवावस्था में यदि आपने कोई शोहरत हासिल की हो तो वह शोहरत बनी ही रहे। सुख जो आज है, जरूरी नहीं कि वह कल भी बना रहे। इसलिए यह जरूरी है कि समय के इस सत्य को दिल से स्वीकार करने के लिए तैयार रहें कि आज जो है वह हमेशा नहीं रहेगा। युवावस्था में जो ऊर्जा, बल और ताकत था वह समय के साथ-साथ जीवन के सांध्यकाल में हमारे साथ बना रहे जरूरी नहीं। हालांकि कुछ प्रयासों के तहत हम उसे कुछ हद तक बनाए रख सकते हैं, लेकिन पूरी तरह नहीं। जिसने इस बात को सहज स्वीकार कर लिया उसी का जीवन आगे चलकर सुखी रह सकता है।
इसलिए वर्तमान समय से बंधे रहने की आवश्यकता नहीं है। स्थितियां बदलती हैं, समय बदलता है। यह पल-पल परिवर्तन ही प्रकृति का और संसार का नियम है। और वैसे भी कोई भी चीज नियम के विपरीत नहीं होती। हर चीज के पीछे ईश्वर का, परमात्मा का और कह सकते हैं कि जगत का नियम है। इसलिए किसी चीज के लिए लड़ें नहीं और जब चीजें बदलें तो दुखी होने की जरूरत नहीं। नई राह पर चलो। पुराने रास्ते से जितनी जल्दी छूट सको, उतनी जल्दी छूटो। पुरानी आदत है चीजों को पकडऩे की और नई आदत है चीजों को छोडऩे की।
साभार - कतरने से

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