Saturday, January 15, 2011

ध्यान क्या है

ध्यान के बारे में विविध तथा परस्पर-विरोधी धारणाएं हैं। साधक के लिए सर्वप्रथम मन के स्वभाव को जानना आवश्यक है, न कि उससे संघर्ष करना। हममें से अधिकतर लोग अपने विचारों तथा भावों द्वारा नियंत्रित व चालित रहते हैं। यह हमें यह सोचने पर विवश कर देता है कि हमीं वे विचार व भाव हैं। ध्यान मात्र होना है, विशुद्ध अनुभूति, विचार व भाव के हस्ताक्षेप के बिना। यह एक वह सहज दशा है जिसे हम भूल गए हैं कि उस तक कैसे पहुंचा जाए।
ध्यान शब्द को सही प्रयोग ध्यान विधि के रूप में ही होना चाहिए। ये ध्यान-विधियां हमारे भीतर एक ऐसा वातावरण निर्मित करती हैं जो हमें देह-मन की पकङ से मुक्त कर हमें स्वयं में स्थित करने में सहायक होती है। आप किसी भी समय पर कर सकते हैं - कार्य करते हुए, आराम करते हुए, एकांत में तथा दूसरों के साथ।

इन ध्यान विधियों की आवश्यकता केवल तब तक है जब तक आप ध्यान की अवस्था को प्राप्त नहीं होते जिसे हम विश्रांत सजगता, चेतनता तथा केन्द्र पर स्थापित होना कहें और यह केवल क्षणिक अनुभूति नहीं अपितु आपकी श्वसन-क्रिया की भांति अस्तित्वगत अनुभव है।


ध्यान...
केवल उन लोगों के लिए है जो आध्यात्मिक खोज में संलग्न हैं।
ध्यान के बहुआयामी लाभ हैं। जिनमें मुख्य है - विश्रांति की क्षमता तथा तनावरहित सजगता।

"मन की शांति" प्राप्त करने के लिए

मन की शांति विरोधाभासी शब्द है। मन स्वभाव से ही वाचाल है। ध्यान द्वारा हम ऐसा गुर जान लेते हैं जो आपके और मन के व्याख्यान के भीतर एक फासला कायम कर देता है ताकि यह मन भावनाओं तथा विचारों की नौटंकी के साथ आपके मौन की अस्तित्वगत दशा को भंग न कर सके।

एक मानसिक अनुशासन या मन को नियंत्रित करने का प्रयास है ताकि आपका वैचारिक-तल और समृद्ध हो सके।
ध्यान मन पर काबू पाने के लिए एक मानसिक प्रयास या प्रयत्न नहीं है। प्रयास व नियंत्रण ऐसे शब्द हैं जो तनाव की ओर इंगित करते हैं और तनाव ध्यान की दशा के सर्वथा विपरीत है। इसके अतिरिक्त मन को नियंत्रित करने की कोई आवश्यकता नहीं - बस यह समझना है कि इसकी गति क्या है। साधक को मन पर काबू पाने की और विचारवान होने की कोई आवश्यकता नहीं - आवश्यकता है तो अपनी चेतना के तल को ऊपर ले जाने की।

केँद्रीकरण, एकाग्रता या चिंतन।
केँद्रीकरण, एकाग्रता की भांति चेतना को संकीर्ण करना है। आप अन्य सब कुछ नकार कर एक वस्तु पर एकाग्र होते हैं। इसके विपरीत ध्यान में दोनों का समावेश है, आपकी चेतना विस्तीर्ण होती जाती है। एकाग्रचित व्यक्ति केवल एक वस्तु पर केंद्रित होता है - शायद धार्मिक विषय पर, किसी चित्र पर या फिर किसी प्रेरणात्मक सूत्र पर। साधक मात्र सजग होता है परंतु किसी विशेष वस्तु के प्रति नहीं।