हमारा सोचा हुआ काम जब नहीं होता है तो कुछ लोग केवल स्थितियों का विश्लेषण करते हैं। कुछ सारा दोष दूसरों पर डाल देते हैं। जो धर्म भीरू हैं वे लोग भगवान और भाग्य को भी बीच में ले आते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जो अपनी असफलता, दु:ख और परेशानियों का कारण व निदान अपने भीतर ढूंढते हैं।
एक फकीर के पास आदमी ने जाकर कहा दुनिया में बहुत दु:ख हैं। जिधर देखो लोग परेशान हैं। कब हटेंगे दुनिया से दु:ख। उस फकीर ने कहा। दुनिया दु:खी नहीं है, तुम ही दु:ख हो। बात बड़ी गहरी है और सारे फकीर, संत-महात्मा यही कहते हैं। जिन्दगी दु:ख है, दुनिया नहीं। यह दु:ख और सुख का खेल मन में है पहले यहां से शुरू होता है और फिर इसका प्रतिबिम्ब दुनिया में नजर आता है।
फौजियों को परेड क्यों कराई जाती है? युद्ध में परेड काम नहीं आती लेकिन उनका शरीर लेफ्ट और राईट की ध्वनि के साथ अनुशासन में आ जाता है। और युद्ध में परेड नहीं अनुशासन काम आता है। ठीक ऐसे ही हमें जीवन के संघर्ष में विचारों का अनुशासन काम आएगा। इसी को कहा गया है दु:ख हम हैं, संसार नहीं। पहले दुकानों पर एक तख्ती लगी रहती थी जिस पर लिखा होता था आज नगद, कल उधार। इसमें कल शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि कल कभी आता नहीं।
हर कल आज है, वर्तमान है। जिस दिन आप भूतकाल को छोड़ेंगे, वर्तमान से जोड़ेंगे और भविष्य को योजना के स्तर पर पकड़ेंगे उस दिन आपकी पकड़ अपने सुख-दु:ख पर अलग ढंग से होगी। इसलिए जब भी जीवन में दु:ख जैसा आए, उसके कारण में स्वयं को जरूर खोजिए और ऐसा करते हुए एक काम अवश्य करें जरा मुस्कुराइये...
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